ZEE Fake News Case : सीनियर्स ‘झुकेगा’ नहीं, फिर जूनियर्स को क्यों चैनल से निकाला?

परमेंद्र मोहन, वरिष्ठ पत्रकार 

अभी हाल ही में एक नेशनल न्यूज़ चैनल के प्राइम टाइम शो में एक फेक़ न्यूज़ चलाई गई, जिसके बाद हंगामा हुआ, केस-मुकदमे हुए, एंकर की गिरफ़्तारी-बचावी गिरफ़्तारी-फरारी की ख़बरें आईं। चैनल की गलती थी, गलती पर सबको झुकना होता है, चैनल भी झुका और माफी मांगी, हालांकि झुकने के बाद बाद ये भी कहा कि झुकेगा नहीं वगैरह लेकिन फिर थोड़ा और झुकते हुए कार्रवाई भी की गई। मैं यहां बात उसी कार्रवाई के संदर्भ में करने जा रहा हूं।

तो मामला फेक न्यूज़ यानी फ़र्जी ख़बर चलाने का था, जो उसी शो में चली जिसपर नोटों में नैनो चिप की शायद टीवी इतिहास की सबसे मनोरंजक और चर्चित फर्जी ख़बर चलाने का भी सेहरा बंधा है। ख़बर वो भी गढ़ी गई थी और ख़बर ये भी गढ़ी ही गई क्योंकि सिर्फ़ एक बाइट चलाने भर का मामला हो तो समझा जा सकता है कि ज़ल्दबाज़ी में या समझ में कमी की वजह से गलती हो गई, लेकिन जब ख़बर का विश्लेषण किया जाता है, समझाया जाता है तो मतलब ये होता है कि टीम इस बारे में आश्वस्त है कि ख़बर क्या है, उसे दिखाना क्या है, कितना दिखाना है, कैसे दिखाना है?  

जी न्यूज नें 2000 के नए नोट में चिप लगे होने का दावा किया था

मैं इस मामले में लिखना नहीं चाहता था, दूसरों की फटी में टांग अड़ाने की आदत भी नहीं है और जिस थाली में कभी खा चुका हूं, उसमें छेद करने का अनैतिक काम करने की ज़रूरत भी नहीं है, इसके बावजूद अब ये लिखना ज़रूरी है क्योंकि जब सीनियर्स बड़ी गलतियों के लिए निर्दोष जूनियर्स की बलि चढ़ाने का अनैतिक और अमानवीय कदम उठाएं तो फिर मौन रहना उस गलत कदम का नैतिक समर्थन करना होता है, जो मैं कर नहीं सकता।

प्रोडक्शन और असाइनमेंट के दो बच्चों को फर्जी ख़बर चलाने के मामले में चैनल से निकाल कर उन सबको बचाने का काम किया गया, जिनकी सीधी सीधी पेशागत ज़िम्मेदारी बनती है। नैतिक ज़िम्मेदारी जिनकी बनती है, मैं उनकी बात ही नहीं कर रहा क्योंकि नैतिकता जैसी कोई चीज़ अब विरले ही पाई जाती है। जो भी साथी मीडिया में हैं, वो अच्छी तरह जानते हैं कि एक-दो जूनियर लेवल के बच्चे न्यूज़रूम में इतनी हैसियत, इतनी दखल नहीं रखते कि अपने मन से कुछ ऑन एयर करा सकें। एक पूरा सिस्टम होता है, एक पूरी चेन होती है, बाइट सुनी जाती है, संदर्भ समझा जाता है, फिर आगे बढ़ाई जाती है, फिर एडिट की जाती है, फिर उसका कंटेंट लिखा जाता है, फिर पूरे शो का रन ऑर्डर बनाया और चेक किया जाता है, फिर हर ख़बर का विश्लेषण किया जाता है, तब जाकर ख़बर एंकर के जरिये दर्शकों तक पहुंचती है। ऐसे में दो जूनियर बच्चों का भविष्य ख़राब करना और वो भी बिना किसी गलती के, सिर्फ़ दूसरों की करतूत पर पर्दा डालने के लिए, शर्मनाक भी है और गलत परंपरा की शुरुआत भी।

मुझे तो हैरानी हो रही है उस शो के प्रोड्यूसर, उस शिफ्ट के इंचार्ज, असाइनमेंट हेड, इनपुट हेड, आउटपुट हेड के अस्तित्व पर कि जिस तरह से शो के एंकर को बचाने के लिए झुकेगा नहीं और गिरेगा नहीं जैसी भावना दिखाने पर एकजुट हैं, वैसी सोच अपनी ही टीम के दो जूनियर बच्चों के प्रति क्यों नहीं दिखाई? इस चैनल के मेरे कुछ मित्रों ने अफसोस जताया कि किसी भी संस्थान ने एक बार भी गलती पर माफी मांगने के बावजूद एक्शन का विरोध नहीं किया?

चैनल के मित्रों, जब आप अपने ही बच्चों के साथ खड़े नहीं हो तो आपके साथ कौन खड़ा होना चाहेगा? रीढ़ ही नहीं है जब आपमें तो दूसरों की रीढ़ उधारी पर कैसे मिलेगी? मत कीजिए ऐसा..वापस लीजिए दोनों बच्चों को, इतने सारे चैनल हैं ग्रुप के, यहां नहीं तो कहीं और नियुक्त कीजिए, लेकिन टीम का भरोसा ही नहीं बचा पाएंगे तो चैनल क्या चलाएंगे? हो जाती हैं गलतियां, हम सभी इसी क्षेत्र के सहकर्मी हैं, दबाव होता है, तनाव होता है, डेडलाइन है, सबको देखना होता है, काम करने वालों से ही गलतियां भी होती हैं, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि चार को हाथ पकड़कर बचाया जाए और दो को जबरन डुबो दिया जाए। जो फर्जी ख़बर चलाई थी, उसी की असली ख़बर में ये भी था कि बच्चों को माफ कर दिया जाए, यहां तो माफ करने वाली बात भी नहीं है, इसलिए एक बार फिर यही इच्छा जताना चाहूंगा कि बच्चों को बख्श दिया जाए, बलि का बकरा न बनाया जाए।

(नोट : ये लेखक के निजी विचार हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *