कानून नहीं, शिक्षा और जागरूकता से संभव है जनसँख्या नियंत्रण

लेखक, चिराग झा

भारत भूगोल और आबादी के मामले में विश्व के बड़े देशों की सूचि में आता है. साल 2019 में संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों का विभाग के जनसंख्या प्रभाग ने एक रिपोर्ट निकाली जिसमे दावा किया गया की साल 2027 तक भारत की आबादी चीन को पीछे छोड़ देगी। भारत में आखिरी बार जनगणना साल 2011 में हुआ था जिसमे देश की आबादी करीब 120 करोड़ सामने आई थी. इसके बाद जनगणना साल 2021 में होनी थी जो की कोरोना महामारी के कारण टल गई. हालांकि यह अनुमान लगाया जाता है की वर्तमान में भारत की आबादी ने 140 करोड़ के आंकड़े को छू लिया है. फ़िलहाल भारत चीन से आबादी में ज्यादा पीछे नहीं है और बहुत जल्द ही भारत चीन को इस मामले में पीछे छोड़ कर विश्व का सवार्धिक जनसँख्या वाला देश बन जाएगा।

यूँ तो इंसान को मानवीय संसाधन के तौर पर देखा जाता है, पर तब क्या जब भारत जैसे देश में जनसँख्या बढ़ती ही जा रही हो लेकिन उनके लिए पर्याप्त मात्रा में संसाधन बचे ही ना हो! भारत एक ऐसे दौर से गुज़र रहा है जहाँ बेरोज़गारी, महंगाई, और गरीबी अभी भी काफी ज़्यादा है. वहीं भुखमरी भी एक अलग मुख्य समस्या बनी हुई है. अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था की कमी के बीच लोगों के द्वारा ज्यादा बच्चे पैदा करना भारत के लिए एक चुनौती सा बन गया है. हर साल भारत अपनी जीडीपी का 4 फीसद केवल बच्चों के कुपोषण के चलते गंवा देता है. साथ ही बेरोज़गारी और गरीबी के चलते बच्चों को परिवार के द्वारा पूरी शिक्षा भी नहीं करवाई जाती और काफी कम उम्र में ही दिहाड़ी और मज़दूरी करने के लिए लगा दिया जाता है. वर्ल्ड बैंक ने इस पर अपनी चिंता ज़ाहिर करते हुए बताया की भारत में 40 फीसदी काम करने वाली आबादी सिर्फ बच्चों की है, जो की भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भविष्य में खतरे की घंटी साबित हो सकती है. ऐसे माहौल में भारत की बढ़ती आबादी मानवीय संसाधन नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र और देश के साधनों पर किसी बोझ से कम नहीं. 

अब विषय यह है की जनसँख्या नियंत्रण का कोई वास्तविक समाधान है या फिर इस पर कोई ठोस कानून लाना ही आखिरी विकल्प है. दरअसल ऐसे कई तरीके हैं जिन से सनसँख्या पर रोक थाम की जा सकती है. इसमें सबसे बड़ा तरीका है महिलाओं को शिक्षित करना. ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखा जाता है और काफी कम उम्र में शादी कर के विदा कर दिया जाता है. ऐसे में उनके पास प्रजनन को लेकर कम समझ होती है. बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने भी इस बात को कई बार मंच से कहा है की महिलाओं को शिक्षित और जागरूक कर के प्रजनन दर में कमी आ सकती है और बिहार में वास्तव में कमी आई भी है. इसके साथ-साथ हाल ही में केंद्र सर्कार द्वारा महिलाओं के शादी के उम्र को 18 से बढ़ा कर 21 कर देना भी इस दिशा में एक सकारात्मक फैसला है. 

आगे बात करें तो गर्भनिरोधक तरीकों का प्रचार प्रसार कर के भी लोगों को जागरूक किया जा सकता है. समाज में आम तौर पर ग्रामीण परिवेश में कंडोम जैसे वस्तुओं पर बात करने को गलत माना जाता है, लेकिन इसके इस्तेमाल के बारे में अगर लोगों को जागरूक किया गया तोह महिलाओं को गर्भ से बचाया जा सकता है, साथ ही यौन संचारित संक्रमण से भी बचाव किया जा सकता है. इसके साथ ही गर्भ को रोकने के स्थाई तरीकों के प्रचार से महिलाओं को 2 बार से अधिक प्रेगनेंट होने से बचाया जा सकता है. 

हालांकि इससे अलग जाकर उत्तर प्रदेश सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण बिल का ड्राफ्ट साल 2021 में तैयार किया जिसके तहत 2 से अधिक बच्चे पैदा करने पर लोगों को सरकारी सब्सिडी और योजनाओं से वंचित रखा जा सकेगा, साथ ही उन्हें स्थानीय निकाय चुनावों में भी लड़ने पर रोक लगेगी. इसके अलावा परिवार में राशन कार्ड की भी संख्या को सिमित कर दिया जायेगा. इस खबर पर लोगों के विचार बंटे हुए हैं, कुछ लोग कानून लाने के समर्थन में हैं तो वहीँ कुछ लोग कानून से ज्यादा लोगों को शिक्षित और जागरूक करने पर ज़ोर देने की बात करते हैं.  

चिराग झा एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और यहाँ प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।

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