भारत के विभिन्न बौद्धिक एवं दार्शनिक मूल्यों की पेशकश करता- लोकमंथन 2022 

Lok Manthan 2022

नातन संस्कृति के विस्तार में सर्व प्रमुख कारण विमर्श की संस्कृति है। इसे समाज में सकारात्मक और संरचनात्मक विकास की वैज्ञानिक पद्धति के मूल में भी सर्वप्रथम स्वीकार किया जाता है। लोकतंत्र की पहली शर्त भी यही है। उसी पौराणिक और ऐतिहासिक विमर्श की परंपरा में लोकमंथन 2022,( Lok Manthan 2022 ) आम जनमानस के चिंतन-मनन एवं बौद्धिक विमर्श के मंच के रूप में गुवाहटी में देखने को मिला।

विगत वर्षों में दो सफल आयोजन 2016 एवं 2018 के लोकमंथन कार्यक्रम के पश्चात् 2022 में यह भव्य आयोजन भारतीय सांस्कृतिक उत्थान के लिए पूर्वोत्तर राज्यों के समाजिक, भौगौलिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक अस्मिता के विमर्श को आमंत्रित कर राष्ट्रीय स्तर पर प्रोत्साहित करने का प्रयास रहा। पूर्वोत्तर राज्यों के सांस्कृतिक कुंभ का यह मंथन भारत के 5000 साल पुरानी सभ्यता एवं संस्कृति में पूर्वी भारत के योगदान को सम्मानित करने का आयोजन कहना चाहिए । यह मंच संभ्रात बुद्धिजीवियों, राजनैतिक चिंतकों तक सीमित नहीं है बल्कि समाज के अंतिम व्यक्ति में सांस्कृतिक संवाद स्थापित करने के उद्देश्य के लिए प्रतिबद्ध रहा है। इस पुनर्जागरण के यज्ञ लोकमंथन2022 में 22 से 24 सितम्बर तक विभिन्न प्रबुद्ध को एकत्र करने के लिए असम सरकार के सहयोग और बौद्धिक समरसता के वाहक प्रज्ञा प्रवाह के प्रयासों की सफल परिणति देखने को मिली।

Lok Manthan 2022

भूमंडलीकरण के इस दौर में जहाँ निजता व्यक्ति का एकमात्र लक्ष्य होता जा रहा है उस दौर में भारत की जनजातीय सभ्यताओं ने भारत की सांस्कृतिक अस्मिता को सहेज कर अगली पीढ़ी तक सौंपने का कार्य किया हैं। व्यक्ति से व्यक्ति को जोड़ने के रामकृष्ण युगीन लोकाचार की परंपरा को लेकर आगे बढ़ाया हैं । यदि हम पूर्वोत्तर के राज्यों को भारतीय संस्कृति के वृक्ष की शिराएं कहे तो कोई दो राय न होगा। लोकमंथन कार्यक्रम के माध्यम से हमें उत्तर पूर्वी राज्यों के कई आधुनिक और पुरातन सांस्कृतिक कलाओं, परंपराओं, विविध रंगों, विशिष्ट जीवन शैली, जनजातीय उत्सव- पर्व, खान पान, व्यवहार, सामाजिक आध्यात्मिक रीतियों, सहिष्णुता, विचार-विनिमय इत्यादि को करीब से देखने और एक बार पुनः अपनी सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौटने का वैचारिक मंथन का अवसर मिला ।

Lok Manthan 2022

आजादी के 75वें वर्ष के अमृत कल के पूर्ण होने के अवसर पर ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ के विचार के लिए भारत के विभिन्न हिस्सों से लोगों को पूर्वोत्तर के राज्यों के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान और संवाद स्थापित करने के लिए सांस्कृतिक हाट के रूप में इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह प्रयास वर्तमान देश और काल की स्थिति के निरीक्षण के साथ-साथ वैदिक काल की परंपरा को स्थापित करने एवं अनुकूल और समावेशी अवसर उपलब्ध कराने के लिए भी प्रतिबद्ध रहा है। पूर्वोत्तर में आयोजित इस सांस्कृतिक मंच को उतना ही भव्य माना जाना चाहिए जितना नैमिषारण्य में सनिकादी संवाद के अनुसार 88 हजार ऋषियों के समागम पर हुआ होगा। लोकमंथन की शुरुआत 21 सितम्बर को प्रदर्शनी उद्घाटन से हुआ लेकिन वैचारिक सत्र की वास्तविक शुरुआत 22 सितम्बर को भारत के माननीय उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के वक्तव्य से, असम के मुख्यमंत्री माननीय हिमंत बिश्वा सरमा, प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक माननीय जे. नंदकुमार की गरिमामय उपस्थिति में हुआ। वही कार्यक्रम का समापन सत्र राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सहकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले एवं केरल के राज्यपाल मा. आरिफ मोहम्मद खान के वक्तव्य से हुआ ।

यह सर्वविदित है कि भारत में ही नहीं विश्व में नदियों ने महान संस्कृतियों को न सिर्फ जन्म दिया बल्कि उन्हें लगातार सिंचती आई है। ब्रह्मपुत्र की घाटी पर बसा माँ कामख्या की पावन भूमि, भरतमुनि के नाट्य शास्त्र की परंपरा और असम के अंकिया नाट और उनकी मठ संस्कृति में रचा बसा गुवाहटी शहर यह भारत की एकता के मूल्यों को आत्मसात कर उसके विविध स्वरूप को जानने और समझने का समागम रहा। इस उत्सव में हमने कई अद्भुत और विलुप्त होते धरोहरों के उदाहरण देखे जिन्हें पूर्वी राज्यों ने संक्रमणकालीन परिस्थितियों से बचाकर सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंध के रुप में सहेजा कर रखा है।

Lok Manthan 2022

भारत के इस संचित ज्ञान को साझा कर अनुभव करने के लिए लोक मंथन का मंच माननीय जे. नन्द कुमार अखिल भारतीय संयोजक प्रज्ञा प्रवाह, के नेतृत्व में भारत सरकार के सांस्कृतिक उत्थान के लिए किए गए प्रयासों की ही एक कड़ी कही जानी चाहिए जिसे उत्तर पूर्वी राज्यों के आलोक में कला, साहित्य, भाषा, मीडिया और सिनेमा के बदलते स्वरूप में आम जनमानस को जोड़ने, प्रोत्साहित करने और प्रसारित करने के लिए आयोजित किया गया। पिछले कई शताब्दियों से देश के राजनीतिक इच्छाशक्ति की दुर्बलताओं के कारण उत्तर पूर्व के राज्यों को दरकिनार किया गया। वहां की मूलभूत आवश्यकताओं, सामाजिक, सांस्कृतिक आध्यात्मिक ढांचों में फेरबदल कर, भाषाओं, बोलियों एवं लिपियों पर ध्यान न देकर मूक रहने के लिए बाध्य किया गया। किन्तु अब उभरते राष्ट्रवाद की अपेक्षाओं, सामाजिक न्याय तथा समता के आधार पर विकास को माध्यम बनाते हुए सामाजिक गतिशीलता के समस्त प्रयास किए जा रहे हैं। देखा जाए तो लोकमंथन विविधताओं का उत्सव रहा जो सम्मिलित समाज के सभी महानुभावों को सनातन संस्कृति के समीक्षक, संवाहक एवं सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक विवादों के निस्तारण के लिए श्रेष्ठ चिंतन के भिन्न-भिन्न आयाम पर अपनी आवाज मुखर करने के लिए मंच देने का कार्य किया हैं ।

Lok Manthan 2022

प्रकृति के करीब उत्तर पूर्व के प्रत्येक राज्य की अपनी एक धरोहर, भौगौलिक और सांस्कृतिक पहचान है जो न जाने कितने ही लोक कथाओं के माध्यम से भारत के ‘एक राष्ट्र’ की अभिव्यक्ति की है। उत्तर पूर्वी राज्यों का यह संगम कई प्राचीन सभ्यताओं के संरक्षण के रुप में आज विश्व को विभिन्न बौद्धिक, दार्शनिक मूल्यों की पेशकश कर रहा है। आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर राष्ट्रीय, सांस्कृतिक आस्थाओं के जड़ों को सींचने, उन्हें विकसित करने का यह मंथन भारत के स्वर्णिम इतिहास को दोहराने जैसा है।

संगीता केशरी

लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय की पीएचडी हिंदी की शोधार्थी और होप फाउंडेशन की मीडिया कंसल्टेंट् हैं।

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