…खेल इसका ही है साराकोई बटर लगा कर खाता है
कोई सूखी ही चबा जाता है
और किसी को हर रोज
नसीब भी नहीं हो पाता है।
सारा किस्सा पेट के लिए है। पेट के लिए आदमी क्या-क्या नहीं करता है। मेहनत करता है, मजदूरी करता है। चोरी और चाकरी करता है। दादागिरी और बेइमानी करता है। तब जाकर उसे दो वक्त का खाना नसीब होता है।
तो बात ‘दो जून की रोटी’ की। आपने बड़े-बुजुर्गों से सुना होगा या फिर किताबों में पढ़ा होगा कि ‘दो जून की रोटी’ बड़े नसीब वालों को मिलती है। और आज 2 June है। सोशल मीडिया ‘दो जून की रोटी’ से जुडे़ पोस्ट, मीम्स से पटा पड़ा है।
कवि और राजनेता रहे कुमार विश्वास ने अपनी एक पुरानी पोस्ट को फिर से शेयर किया है। थाली में रोटी सब्जी और व्यंजन हैं। फोटो देखकर आपके मुंह में पानी आए बिना नहीं रह पाएगा।
लेकिन, सबकी नसीब कुमार विश्वास जैसी कहां ? किस्मत वालों को मिलती है दो जून की रोटियां, बड़े पापड़ बेलने पड़ते हैं इन रोटियों के लिए!
क्या है ‘दो जून की रोटी’ का अर्थ?
सवाल ये है कि ‘दो जून की रोटी’ का मुहावरा कहां से आया? अंग्रेजी तारीख़ 2 June आते ही लोग सोशल मीडिया पर पोस्ट, जोक्स और मीम्स क्यों शेयर करने लगते हैं? ‘दो जून की रोटी’ का अंग्रेजी महीने जून की 2 तारीख़ से क्या कनेक्शन है ?
तो इसका सीधा सा जवाब ये है कि दो जून की रोटी का 2 June की तारीख़ से कोई संबंध नहीं है। अवधी में वक्त या समय को जून कहते हैं। तो मुहावरे में दो जून का मतलब दो वक्त से है. तो ये समझिए कि इसका मतलब दो समय यानी कि सुबह और शाम की रोटी (भोजन) से है। अवधी, हिंदी पट्टी की की एक उपभाषा है। यह उत्तर प्रदेश के ‘अवध क्षेत्र’ (अयोध्या, लखनऊ, रायबरेली और उसरे आस पास) में बोली जाती है।
प्रसिद्ध ग्रंथ ‘रामचरित मानस’ जिसे तुलसीदास जी ने लिखा है, अवधी भाषा में लिखी गई है।
सबके नसीब में नहीं है दो जून की रोटी
साल 2011-2012 के आंकड़ा कहता है, भारत में कुल 21.92 फीसदी लोग गरीबी की रेखा से नीचे अपना जीवन यापन कर रहे हैं. अगर इनकी संख्या की बात करें तो ये संख्या है करीब 27 करोड़।
मोदी सरकार का दावा है कि देश में 80 करोड़ लोगों को फ्री राशन मुहैया कराया जा रहा है। जाहिर है देश की बड़ी आबादी गरीबी की चपेट में है। अगर ऐसा नहीं होता तो लोग सरकारी राशन के भरोसे नहीं होते। कोरोना महामारी के दौरान करोड़ों लोगों के रोजी रोजगार पर असर पड़ा है और लोग अपने परिवार दो जून की रोटी मुहैया करा सके इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं।
लेखक संपर्क सूत्र :
रजनीश रंजन
rajnish782@gmail.com