राहुल गांधी ने एक टी वी साक्षात्कार में जवाब देते हुए कहा कि मुझे कांग्रेस में काडर बेस संगठन नही चाहिए । आप आरएसएस और बी जे पी का काडर देखिए ? देश और समाज को कैसे आतंकित कर रक्खा है अपनी स्थापना काल से ही । यही काडर है तो नही चाहिए कांग्रेस में काडर , बस ।
पिछले तीन महीने से प्रशांत किशोर का हुलहुला चल रहा था मीडिया में, कांग्रेस में , जी 23 में , की प्रशांत किशोर कांग्रेस ज्वाइन कर रहे हैं । राहुल गांधी से बात चल रही है । प्रियंका गाँधी से बात चल रही है । सोनिया गाँधी से बात चल रही है । जी 23 विरुद्ध है ।
प्रशांत किशोर केवल राहुल के प्रति ही उत्तर दायी रहना चाहते हैं । वह अनलिमिटेड पावर चाह रहे हैं । मानो प्रशांत किशोर किसी सी ई ओ के रूप में नियुक्त होना चाहते हों और कांग्रेस एक कंपनी हो ! कुछ खुंदकिये और जाहिल कांग्रेस को गाँधी परिवार की कंपनी भले कह देते हों किन्तु कांग्रेस भारतीय समाज के समग्र स्पेक्ट्रम की आत्मा का प्रतिनिधि राजनीतिक संगठन रहा है । आज भी उसकी उस समग्र समाज के लिए दरबाजे खुले रहते हैं ।
गलत सही को छोड़िए , राजनीति और सोशल साइंस में सब कुछ सही और सब कुछ गलत हो सकता है । यह विश्व का सर्वाधिक ( फ्लूइड ) तरल विषय है ।
आज प्रशांत किशोर के कांग्रेस ज्वाइन करने के वन एक्ट प्ले का पटाक्षेप सा हुआ लगता है । खबरे हैं कि प्रशांत किशोर आने वाले 5 विधान सभाओं के चुनाव व उनके परिणाम के दायित्व से इनकार कर रहे थे ।
उनका मत है कि इन चुनावों के लिए ढांचागत कार्य करने के लिये समय कम है । तीन चार माह में यह संभव नही है । यह बात सही भी है ,किन्तु कांग्रेस नही मान सकती । हम 2019 से अध्यक्ष चुनाव की प्रक्रिया में अभी तक व्यस्त हैं । हमारी( कांग्रेस )कार्यगति अलग है ।
अब प्रशांत किशोर की स्किल को लें । वो तथाकथित चुनाव परिणामो के द्वारा अलौकिक घोषित हो गई है जो नितांत गलत है । 2014 से 2021 तक बीजेपी , जे डी यू, काँग्रेस व सपा अमरिंदर और 2021 के बंगाल ममता चुनाव का प्रबंधन प्रशांत किशोर ने किया था ।
इनमें कांग्रेस सपा को छोड़ कर जिन पार्टियों के चुनाव में प्रशांत किशोर ने काम किया वो बिना प्रशांत किशोर के भी मजबूत स्थिति और विजय की प्रबल सज़्मभावनाओ से युक्त थीं । 2017 के सपा कांग्रेस चुनाव प्रशांत किशोर की रियल टेस्टिंग थी । इसमें वो पूर्णतः फेल हुए । इसका अर्थ यह नही की उनका चुनाव प्रबंधन और पर्म्युटेशन कॉम्बिनेशन व्यर्थ है , नही वह उपयोगी तत्व है । किंतु वोट निर्माण मशीन नही है वह और उसकी कला ।
कांग्रेस डिफेक्टिव सीमेंस से मजबूत टांगो का सत्ता पुत्र चाहती है , अर्थात ढांचागत संगठन की जगह वो मनोनीत स्ट्रक्चर , वर्कमेनशिप की जगह चापलूस ओर कोर्निश बजाने वाले , थौटफुल व इन्नोवेटिव आइडियाज जेनरेट करने वालों की जगह मोनोटोनस क्लेरिकल टेकीज से बना हुआ माचिस कि तिलियों जैसा स्ट्रक्चर चाहते हैं , रखते हैं और उसी पर मुग्ध होना चाहते हैं ।
मनोंनयनित अकार्यकुशल , श्रमहीन , इतिहास से अनभिज्ञ, और समस्याओं के समाधान प्रस्तुत करने में अक्षम लोगों से बनाये संगठन के दोहरे लाभ और तिहरे नुकसान हैं । लाभ – कोई मनोनयनित नेतृत्व से सवाल करने या सुझाव देने की कूबत , कैफियत और आत्मविस्वास नही दिखा सकता – अर्थात नेतृत्व निर्बाध- निर्द्वंद रह सकता है । ( जी 23 अलग है वो मलाई खा खा कर जीवन निकाल चुका – वो बूढ़े बहादुर शाह की पुरानी तलवार हैं । जो शेर कह सकती है दुश्मन का लहू नही चख सकती ) दूसरे नेतृत्व सदैब इस खुशफहमी में रह सकता है कि जो वह सोच रहा है वही उत्तम व श्रेष्ठ समाधान या विचार है ।
मनोनयनित सन्गठन के तिहरे नुकसान हैं । पार्टी में नवीन विचारों का प्रवेश नही होगा । टेलेंटेड लोग डर के मारे चापलूसी की कला सीख जाएंगे या छोड़ जाएंगे । तीसरा नुकसान , चुनावो की सभी असफलताओं का जिम्मा अन्यों और अन्य कारकों और कारणों पर रख दिया जाएगा । परिणाम होगा कि पार्टी को अपनी कमजोरियों और गलतियों का पता ही नही लगेगा । कोल्हू के बैल की तरह एक सर्किल में चलते रहेंगे लेकिन पहुंचेंगे कहीं नही ।
कांग्रेस का विचार है और वह मानती है कि उसका विचार और आइडियोलॉजी जनता के लिए सर्वोत्तम है । इस लिए जनता स्वविवेक से जागरूक होकर स्वम कांग्रेस को वोट देकर विजयी बनाए । इस लिए उसे स्ट्रक्चरल सन्गठन की क्या जरूरत है । बहुत अच्छा – जनता स्वम् वोट करे ! इसका अर्थ है युग , जीवन पद्यति और आवश्यकताओं में हुए परिवर्तनों और तात्कालिक व समूह चेतना के विचलन व मनोवैज्ञानिक वैचारिक विरलता के प्रभाव से काँग्रेस अनभिज्ञ है या बना रहना चाहती है । इस लिए उसे अपने पक्ष में जनता से नैसर्गिक मतदान चाहिए । उसके लिए उसे भला क्यों और किस लिए काडर चाहिए ?
स्ट्रक्चरल संगठन के पांच लाभ हैं और तीन हानियाँ । सबसे बड़ा लाभ है पार्टी सदैव सशक्त , ऊर्जावान, स्नायु से युवा , और काडर पर अपनी परफॉर्मेंस बेहतर करने के लिए प्रेरणा व दबाब निरंतर बना रहता है । दूसरे पार्टी में यह प्रश्न कभी नही आता कि अब कौन नेतृत्व करेगा । तीसरे प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी सेगमेंट के शीर्ष पर पहुंचने के मार्ग सदा खुले रहेंगे । पार्टी को स्केनटी टेलेंट , स्टार वैल्यू और अप्रतिबद्ध शाइनिंग स्टारों की आवश्यकता नही रहेगी ।
स्ट्रक्चरल संगठन में सबसे बड़ी हानी है कि नेतृत्व पेरेंटल होना आवश्यक नही है । दूसरे सत्ता पर संगठन का नियन्त्रण रहेगा । काडर की अनुसंशा मंत्रिपरिषद की स्वच्छंदता – स्वरिस्तेदार और नाती पोते इररेलेवेंट होने का रिस्क रह सकता है । संक्षिप्त में कह सकते हैं सरकार को राजनीतिक दल के संगठन के साथ सत्ता साझा करना पड़ेगा । सत्ता पर केंद्रीकृत एकाधिकार नही होगा मंत्रिपरिषद का।
अब सोचिए कि कौन सत्ता के एकाधिकार से स्वम् को वंचित करना चाहेगा ? कौन है जो अपने असीमित अधिकार समर्पित करने को उत्सुक होगा ? जो एसा करने में सक्षम होगा वो सबसे शक्तिशाली संगठन और कार्यपालिका से भी व्यापक पहुंच का पार्टी संगठन खड़ा कर सकता है । अब स्वम तय करिए कि हमारी कांग्रेस का संगठन जैसा है वो वैसा क्यों है । उसके प्रोस एंड कॉन समझिए और प्रशांत किशोर के केस , प्रतिभा और कांग्रेस के ओल्ड ब्लड की मजबूरी समझिए । इन्हें कांग्रेस नही इन्हें अपनी औलादें राहुल गाँधी के सर पर रखने की कामना है , सुधार और संगठन से क्या लेना – देना इनको । परिणाम स्वरूप अनपढ़ टेकी क्लेरिकल ओरिएंटेड टीम अपने मिसलिडिंग प्रोग्रामो को गाइडिंग पेरेंट समझ रही है । इस राजनीति में शाइनिंग गिलिम्प्सेज नही निरंतर युद्धक होना होगा गाँधी के विचारों को लेकर औपचारिक क्लासरूम ट्रेनिंग से उत्थान नही होते ।
एक तथ्य अवश्य है , की आरएसएस के संगठन की बुराइयों के आधार पर काडर युक्त संगठन को अमान्य करना न्यायोचित नही कहा जा सकता । लंका में रावण था तो विभीक्षण भी थे । जय हिंद ।