Presidential Election 2022: भारत में कैसे होता है राष्ट्रपति का चुनाव? आसान भाषा में समझें!

नई दिल्ली,27 जून 2022, देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद राष्ट्रपति पद के चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। शुक्रवार को सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने अपना नामांकन दाखिल किया। मुर्मू के नामांकन के वक्त प्रधानमंत्री मोदी समेत सरकार के वरिष्ठ मंत्री भाजपा का शीर्ष नेतृत्व और राजग के बड़े नेता मौजूद थे।


नामांकन को भव्य बनाने के लिए भाजपा ने एनडीए शासित राज्यों के सभी मुख्यमंत्रियों और सहयोगी दलों के वरिष्ठ नेताओं को बुलाया हुआ था।


प्रधानमंत्री मोदी ने संसद भवन परिसर स्थित राज्यसभा महासचिव के कार्यालय में निर्वाचन अधिकारी पी.सी. मोदी को मुर्मू के नामांकन पत्र सौंपा। मुर्मू ने चार सेट में अपना नामांकन दाखिल किया। मुर्मू के नामांकन पत्र पर 60 प्रस्तावक और 60 अनुमोदको ने हस्ताक्षर किया। मुर्मू के प्रस्तावको में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्री शामिल हैं। भारत के 10 प्रमुख आदिवासी जनप्रतिनिधियों ने भी मुर्मू के प्रस्तावक के रूप में हस्ताक्षर किए हैं।


देश के 15वें राष्ट्रपति के चयन के लिए गुरुवार को चुनाव आयोग ने 9 जून को चुनाव कार्यक्रम का एलान किया था। दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति चुनाव की तारीखों की घोषणा की थी। चुनाव आयोग द्वारा जारी कार्यक्रम के मुताबिक 15 जून को राष्ट्रपति चुनाव के लिए नोटिफिकेशन जारी हो चुका है, नामांकन की अंतिम तारीख 29 जून है। 18 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव के लिए चुनाव होगा और 21 जुलाई 2022 को परिणाम घोषित किया जाएगा।
आपको बता दें कि देश के मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 25 जुलाई 2022 को खत्म होगा। इसी दिन भारत के नए राष्ट्रपति शपथ भी लेंगी। राष्ट्रपति का पद 1 दिन भी खाली ना रहे इसलिए ऐसा प्रावधान किया गया है। भारत के नए राष्ट्रपति 25 जुलाई को ही शपथ लेते हैं और यह सिलसिला 1977 से चला आ रहा है।


देश को नए राष्ट्रपति मिलने से पहले हम आपको बताते हैं कि आखिर कैसे होता है देश के राष्ट्रपति का चुनाव?


भारत में राष्ट्रपति के चुनाव के लिए एलेक्टोरल कॉलेज है. इस इलेक्टोरल कॉलेज में लोकसभा,राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं के विधायक शामिल होते हैं। इलेक्टोरल कॉलेज के सदस्यों का प्रतिनिधित्व आनुपातित आधार पर होता है। सदस्यों का सिंगल वोट ट्रांसफर होता है मतलब एक वोटर एक ही वोट दे सकता है, लेकिन सदस्यों की दूसरी पसंद की भी गिनती की जाती है।


राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा मे नामित किये गए 12 सदस्यों के अलावा विधान परिषद के सदस्यों को राष्ट्रपति चुनाव में वोट डालने का अधिकार नहीं होता है। ज्ञात हो कि भारत के 9 राज्यों में विधान परिषद हैं। इसका मतलब यह है कि राष्ट्रपति के चुनाव में सिर्फ वही प्रतिनिधि भाग ले सकते हैं, जिन्हें जनता चुनकर विधानसभा या लोकसभा में भेजती है हालांकि, राज्यसभा सदस्य का चुनाव जनता सीधे नहीं करती है, फिर भी उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में भाग वोट देने का अधिकार होता है, क्योंकि उन्हें भी राज्यों के विधान सभा के सदस्यों द्वारा ही चुना जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि राष्ट्रपति को परोक्ष रूप से जनता द्वारा चुना जाता है।
भारत में राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक खास तरीके की वोटिंग प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस प्रक्रिया को सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहा जाता है। इसमें वोटर का एक ही वोट गिना जाता है, लेकिन वह कई अन्य उम्मीदवारों को अपनी प्राथमिकता के क्रम में चुनता है। यहां आपको ये जान लेना जरूरी है कि राष्ट्रपति चुनाव में वोट देने योग्य व्यक्ति केवल एक ही उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव या समर्थन कर सकता है। चुनाव आयोग द्वारा 1952, 1957, 1962, 1967 और 1969 (भारत के तीसरे राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की कार्यालय में मृत्यु के बाद एक प्रारंभिक चुनाव) के चुनावों के बाद 1974 में मतदाताओं को प्रस्तावित करने और एक व्यक्ति की उम्मीदवारी का प्रस्ताव देने का यह नियम अपनाया गया था। यानी जन-प्रतिनिधि राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपने बैलेट पेपर में अपनी पहली, दूसरी, तीसरी पसंद का चुनाव करता है।


राष्ट्रपति चुनाव में हर वोटर के वोटों का वेटेज एक जैसा नहीं होता, बल्कि विधायकों और सांसदों के वोटों की वेटेज अलग-अलग होती है। यही नहीं अलग-अलग राज्यों के विधायकों के वोटों को भी वेटेज अलग-अलग होती है। वेटेज का निर्धारण राज्य की जनसंख्या के आधार पर तय किया जाता है। आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था के जरिए यह वेटेज तय किया जाता है।
विधायकों के मतों का वेटेज राज्य की जनसंख्या के आधार पर तय किया जाता है। इसमें राज्य के विधानसभा सदस्यों की संख्या की भी अहमियत होती है। वेटेज तय करने के लिए राज्य की जनसंख्या को चुने गए विधायकों की संख्या से भाग दिया जाता है। इस तरह से जो अंक निकलता है, उसे 1000 से भाग दिया जाता है। इस तरह से जो अंक हासिल होता है, वही उस राज्य के प्रत्येक विधायक के वोट का वेटेज होता है। इस दौरान अगर शेष 500 से ज्यादा रहता है तो वोटेज में 1 अंक की बढ़ोतरी हो जाती है।


उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में 403 विधानसभा सीटें हैं। यहां की जनसंख्या साल 1971 की जनगणना के मुताबिक 83849905 है। इस हिसाब से यहां एक विधायक के मतपत्र का मूल्य 208 है।


सांसदों के मतों के वेटेज को जानने के लिए सबसे पहले सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुने गए सदस्यों के वोटों के वेटेज को जोड़ा जाता है। फिर सामूहिक वेटेज को लोकसभा के चुने हुए सांसदों व राज्यसभा सदस्यों की कुल संख्या (मनोनीत सदस्यों को छोड़कर) से भाग दिया जाता है। इस तरह से जो अंक मिलेगा, वही प्रत्येक सांसद के वोट का वेटेज होता है। इस तरह भाग देने पर अगर शेष 0.5 से ज्यादा निकलता है तो वेटेज में एक अंक की बढ़ोतरी की जाती है। किसी भी सांसद (राज्यसभा या लोकसभा से) के मतपत्र का मूल्य 708 है।


लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तरह राष्ट्रपति चुनाव में सबसे ज्यादा मत पाने वाला विजयी नहीं होता। बल्कि राष्ट्रपति चुनाव में वही उम्मीदवार विजयी घोषित होता है, जिसे मतदाताओं यानी सांसदों व विधायकों के वोटों के कुल वेटेज के आधे से ज्यादा हिस्सा मिलता है। ध्यान देने की बात यह है कि राष्ट्रपति चुनाव में पहले से तय होता है कि जीतने वाले प्रत्याशी को कितने वोट मिलने चाहिए।


अगर आज की बात करें तो, मौजूदा दौर में राष्ट्रपति चुनाव के लिए जो इलेक्टोरल कॉलेज है, उसके सभी सदस्यों के वोटों का कुल वेटेज 10 लाख, 98 हजार, 882 है। आगामी राष्ट्रपति चुनाव में किसी भी प्रत्याशी को जीत हासिल करने के लिए 5 लाख, 49 हजार, 442 वोटों की जरूरत होगी। जिस प्रत्याशी को सबसे पहले इतने वोट मिलेंगे, वह प्रत्याशी देश का अगला महामहिम होगा।


पहले उस कैंडिडेट को रेस से बाहर किया जाता है, जिसे पहली गिनती में सबसे कम वोट मिले। लेकिन उसको मिले वोटों में से यह देखा जाता है कि उनकी दूसरी पसंद के कितने वोट किस उम्मीदवार को मिले हैं। फिर सिर्फ दूसरी पसंद के ये वोट बचे हुए उम्मीदवारों के खाते में ट्रांसफर किए जाते हैं। यदि ये वोट मिल जाने से किसी उम्मीदवार के कुल वोट तय संख्या तक पहुंच गए तो वह उम्मीदवार विजयी माना जाता है। अन्यथा दूसरे दौर में सबसे कम वोट पाने वाला रेस से बाहर हो जाएगा और यह प्रक्रिया फिर से दोहराई जाएगी. इस तरह वोटर का सिंगल वोट ही ट्रांसफर होता है।

उद्देश्य ठाकुर

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